मंगलवार, मार्च 11, 2008

संगीत और शोर

पिछले तीन चार सालों से काम करते समय जब भी अकेला होता हूँ तो संगीत सुनने की आदत सी पढ़ गयी है. इंटरनेट का कोई भारतीय स्टेशन खोज कर दुनिया में कहीं भी भारतीय संगीत सुनना आज जितना आसान है उतना पहले कभी नहीं था.

कल दिन भर घर पर था. बहुत दिनों से घर पर समय नहीं मिला था और अपनी स्टडी में बहुत सारे काम जमा हो गये थे. शेल्फ पर ढेर लगे किताबों के उन्हें ठीक करना, छाँट कर पुरानी किताबों को फैंकने के लिए निकालना, डीवीडी इधर उधर बिखरी हुई हैं उन्हें ठीक से सहेज कर रखना, फोटो को छाँटना और एल्बम में लगाना, अलमारी के द्राज साफ करना, कागज़ छाँटना, पुरानी पत्रिकाओं को छाँटना, आदि. कई घँटे लगे इस सब काम में और सारे समय संगीत बजता रहा.

रात का खाना लगा तो पत्नी ने खाना खाने को बुलाया और बोली अब इस शोर को बंद करो, सारा दिन यह चीं चीं सुन कर सिर दर्द हो गया है. मुझे थोड़ा सा बुरा लगा कि मेरे संगीत को शोर कह रही है पर बंद कर दिया. कमरे में से आखिरी कागज कूड़ा उठा रहा था जो बिना आवाज का कमरा अजीब सा पर अच्छा लगा. सोच रहा था कि कैसे संगीत भी अधिक हो जाये तो, या उसकी ध्वनी ज़रूरत से अधिक ऊँची हो शोर बन सकता है.

खाना खा कर कुत्ते को लिया और बाग में सैर को निकला. पहले दो दिन बारिश हो रही थी और सर्दी वापस लौट आई थी पर कल रात को न तो बारिश थी न ही वह हड्डियों तक घुसने वाली सर्दी. थोड़ी देर तक ही चला था कि पड़ोस के एक वृद्ध सज्जन दिखे, उनसे हैलो हुई तो वे भी साथ चलने लगे. वैसे तो मुझे तेज चलना अच्छा लगता है पर कुत्ता साथ हो तो तेज नहीं चल सकते, जहाँ कुत्ते को रुकना होता है, वहाँ रुकना ही पड़ता है. वे वृद्ध सज्जन जिनका नाम है अंतोनियो, उनका दायें कूल्हे का ओपरेशन हुआ है तो छड़ी के सहारे धीरे धीरे चलते हैं, उनके साथ साथ चलते हुए, और भी धीमे चलना पड़ रहा था.

अंतोनियो बहुत बातें करते हैं, लगता है कि सारा दिन घर में किसी से बात नहीं कर पाते या शायद घर पर अकेले रहते हैं, पर जब मिलते हैं, सारा समय कुछ न कुछ बोलते रहते हैं. उनके कूल्हे के ओपरेशन के बारे में तो पहले ही बहुत सुन चुका हूँ. कल रात को बात हो रही थी बदलते पर्यावरण के बारे में कि कैसे मौसम बदल रहे हैं, गर्मियों में गर्मी बढ़ गयी है और सर्दियों में सर्दी कम पड़ती है. तभी सामने से जोगिंग करता हुआ एक लड़का आया. अंतोनियो ने उसे हैलो बोला पर वह कानो में आईपोड लगाये संगीत सुनने में मस्त था, उसने शायद नहीं सुना और आगे निकल गया.

अंतोनियो मुझसे बोले, "आज कि दुनिया में साथ साथ कितने काम करते हैं, पर ध्यान किसी तरफ नहीं दे पाते. अगर पूछो कि कौन सा गाना सुना तो बता नहीं पायेगा कि क्या सुना, क्या बोल हैं उसके. आजकल संगीत सुनना इतना आसान हो गया है कि उसकी सुंदरता को हम समझ ही नहीं पाते. जब संगीत सुनने को नहीं मिलता था तो उसको कितने ध्यान से सुनते थे, उसके महत्व को समझते थे. जब मैं छोटा था तो संगीत सुनने का मौका साल में एक दो बार ही मिलता था, चर्च में कभी कोई आरगन बजाने वाला आता या कोई धार्मिक गानों को गाने वाला दल आता तब. हम लोग खुद ही अपने लोकगीत गाते, गिटार के साथ. न रेडियो था, न टीवी, न वाकमैन."

करीब अठ्ठासी वर्ष के हैं अंतोनियो और उनकी बात शायद द्वितीय महायद्ध से पहले की थी. जब उन्हें छोड़ कर घर की ओर आ रहा था तो उनकी बातों पर सोच रहा था.

मुझे याद है जब घर में पहला ट्राँज़िस्टर आया था और कैसे सिलोन रेडियो को मुश्किल से खोज कर गाने सुनते थे, तब विविध भारती नहीं होता था. तब किसी नये गीत को सुन कर कितना उत्साह होता था. पर कल सारा दिन संगीत सुनता रहा, क्या सुना, कुछ याद नहीं. आजकल हर समय बस यही चिंता रहती है कि कैसे नया सुना जाये. दो दिनों में ही नये का नयापन गुम हो जाता है और नये की तलाश चलती ही रहती है.

आज की दुनिया में संगीत सुनना तो बहुत छोटी सी बात है, शायद इसी लिए उसका महत्व कम हो गया है?

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा एन्‍तोनियो ने । ये ठीक है कि हम काम करते हुए संगीत सुनते हैं और वो सुकून देता है । पर संगीत सुनने का असली मज़ा है आराम कुर्सी पर दीन-दुनिया से बेख़बर पड़े रहकर सुनने में । जिसमें आप डूब कर सुनते हैं । कभी कभी मैं अपने मोबाइल फोन पर किसी गाने को बार बार सुनता हूं, खासकर यात्रा के दौरान....तो उसकी नयी पर्तें खुलती हैं । और लगता है...अरे ये गाना ऐसा था क्‍या...ये साज़ हैं क्‍या इसमें । दरअसल संगीत में डूबने के लिए दुनिया की व्‍यस्‍तताओं से बाहर आना होता है ।

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  2. जो कुछ भी सहज उपलब्ध हो उसका मूल्य कम हो जाता है । यही बात संगीत के साथ भी होती है ।
    घुघूती बासूती

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  3. आप क्या सुन रहे थे, यह तो आपने बताया नहीं. वैसे भारत में आजकल संगीत के नाम पर ज्यादातर शोर ही चल रहा है.

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  4. अरे आपका भारत भ्रमण समाप्त हो गया? :) बिना मिले ही चल दिये....


    यात्रा संस्मणो की प्रतिक्षा है.

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  5. हमें भी संगीत सुनने की आदत है् लेकिन सिर्फ गजले।

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  6. मुझे याद है जब घर में पहला ट्राँज़िस्टर आया था और कैसे सिलोन रेडियो को मुश्किल से खोज कर गाने सुनते थे, तब विविध भारती नहीं होता था. तब किसी नये गीत को सुन कर कितना उत्साह होता था. पर कल सारा दिन संगीत सुनता रहा, क्या सुना, कुछ याद नहीं............
    yahi satya hai,aaj hum jaha chahe ,jab chahe gane sun sakte hain.......aaj ke gane to madhur kam,shor adhik hain,
    waise aapne aaj ko bakhubi utaara hai shor banakar

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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