शनिवार, अगस्त 19, 2006

स्ट्रिंग आप्रेशन और स्त्री भ्रूण हत्या

भारत से एक मित्र ने समाचार दिया है कि सहारा टीवी पर एक स्ट्रिंग आप्रेशन दिखाया गया है जिसमे राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश के डाक्टरों को भ्रूण की लिंग जाँच करते हुए तथा स्त्रीलिंग के भ्रूणों का गर्भपात करते हुए दिखाया गया है. करीब सौ डाक्टरों के बारे में दिखाया जा चुका है. कई जगह पर गर्भपात कानूनी सीमा के बाहर, यानि कि २० सप्ताह से बड़े भ्रूणों के गर्भपात भी किये जा रहे हैं. राजस्थान सरकार ने कुछ डाक्टरों को सस्पैंड किया है पर उनके विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं प्रारम्भ की गयी है. राजस्थानी डाक्टरों के सहयोग में भारतीय मेडिकल काऊँसिल ने पत्रकार तथा टीवी चैनल के विरुद्ध बाते कहीं हैं और स्ट्रिंग आप्रेशनों पर रोक लगाने की माँग की है. मेरे मित्र का कहना है कि इन डाक्टरों को सजा देने के लिए अंतरजाल के द्वारा राजस्थान सरकार को पेटीशन भेजने के लिए सबको सहयोग देना चाहिए.

संदेश पढ़ कर मन बहुत से बातें उठीं, जिनमें कुछ विरोधाभास भी है. जाने क्यों, मुझे स्ट्रिंग आप्रेशनों का सुन कर अच्छा नहीं लगता. कुछ गलत होते हुए की छुप कर तस्वीरें तथा वीडियो लेना और उसे टीवी पर दिखाना मुझे मुकदमा सा लगता है जिसमें अपराधी के पास अपने बचाव के लिए कोई रास्ता नहीं होता है और जन समान्य के सामने, वह तुरंत दोषी साबित हो जाता है. यह बात मुझे ठीक नहीं लगती क्योंकि मेरे विचार में सभी के मानव अधिकार हैं, अपराधियों के भी जब तक वे अपराधी साबित न हो जायें और सभी को कानून में अपनी रक्षा करना का हक होना चाहिए. मैं मानता हूँ कि एक बार कानून का रास्ता छोड़ कर हम स्वयं लोगों को दोष देने और सजा सुनाने का अधिकार ले लेते हैं तो सही या गलत कहना सब हमारे हाथ में होता है और सभ्य समाज में यह अधिकार केवल कानून को होना चाहिए. वीडियो में क्या दिखाया जाये, किस बात को काट कर छुपा लिया जाये, यह सब दिखाने वाले पर निर्भर करता है.

दूसरी ओर यह भी मानना पड़ेगा कि कानून कुछ भी फैसला करने में इतनी देर लगाता है और ताकतवर संघों के हिस्से बने लोगों के विरुद्ध कानून भी कुछ नहीं कर पाता, जबकि टीवी पर दिखाने से तुरंत कुछ न कुछ न्याय तो हो जाता है. तीसरी बात यह है आज जब नये तकनीकी उपकरण हैं तो पत्रकार उनका सहारा क्यों न लें. इसी विषय पर अखबार में या किसी पत्रिका में अगर पत्रकार लिखते हैं और वह ठीक लगता है तो टीवी के पत्रकारों द्वारा वीडियो का इस्तमाल क्यों गलत माना जाये? यानि इस विषय पर मेरे विचारों में कुछ विरोधाभास है और मुझे अन्य लोगों की राय जानना अच्छा लगेगा.

रही बात स्त्री भ्रूण हत्या की, यह दुर्भाग्य है भारत का कि ऐसे घृणित अपराध को समाजिक समर्थन सा मिल गया है वरना इतने कानून होने के बाद भी यह समस्या यूँ न बढ़ती जाती. करीब पंद्रह वर्ष पहले अमर्त्या सेन ने जनसँख्या सम्बंधी आँकणे देख कर भारत की 10 करोड़ "गुमशुदा औरतों" का प्रश्न उठाया था. उनका कहना था कि हर देश में पुरुषों और स्त्रियों की संख्या करीब बराबर या स्त्रियों की संख्या कुछ अधिक ही होती है और इस हिसाब से भारत में करीब दस करोड़ स्त्रियाँ कम हैं. तब यह सोचा गया था कि स्त्रियों के साथ भेदभाव की वजह से है, क्योंकि उन्हें खाना कम दिया जाता है, उनकी पढ़ाई कम होती है, बीमार पड़ने पर उनका इलाज कम होता है. आज स्थिति और भी बिगड़ गयी है क्योंकि नयी तकनीकों से पैदा होने से पहले ही जाना जा सकता है कि पैदा होना बच्चा लड़का होगा या लड़की, और लड़की होने पर भ्रूण का गर्भपात कर दिया जाता है.

पिछले वर्ष की भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार हर 1000 पुरुषों के मुकाबले में स्त्रियों की संख्या विभिन्न प्रदेशों में कुछ इस प्रकार की है - आँध्र प्रदेश 978, बिहार 919, दिल्ली 821, गुजरात 920, गोवा 961, हरियाणा 861, केरल 1058, पंजाब 876, त्रिपुरा 948, आदि. यानि यह समस्या अधिकतर उत्तरी और विषेशकर उत्तर पश्चिमी भारत में अधिक है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात जैसे समृद्ध प्रदेशों में.

मेरी एक गायनेकोलोजिस्ट मित्र जो दिल्ली के पास गाजियाबाद में अक्सर ऐसे गर्भपात के आप्रेशन करती है, उससे एक बार इसी विषय पर बात कर रहा था. वह बोली, "जब कोई औरत तुम्हारे सामने आ कर रोये, पैर पकड़ कर मदद माँगे, जिसके सास ससुर और पति उसे तंग करते हों, लड़की हुई तो उसे छोड़ कर दूसरी शादी करने की धमकी देते हों, तो न न करते करते भी दिल पसीज जाता है. आजकल अल्ट्रासाऊँड करना तो टेकनिशयन जानते हैं, उसके लिए डाक्टर की जरुरत नहीं. एक बार स्त्री को मालूम हो जाये कि पेट में लड़की पल रही है तो वह अपना सोचे या होने वाले बच्चे का? लड़की की कोई कीमत नहीं हमारे समाज में, सिर्फ बोझ है, यह सिर्फ उनके लिए नहीं जो गरीब हैं बल्कि उनमें अधिक है जिनके पास सब कुछ है."

सब डाक्टर केवल दया के लिए गर्भपात करते हैं यह मैं नहीं मानता. पैसे कमाने का लालच इसकी सबसे बड़ी वजह है. कानून बन कर भी कोई इसके विरुद्ध कुछ नहीं कर पा रहा तो समाज को कौन बदलेगा? जब तक समाज नहीं बदलेगा हर रोज़ हजारों बच्चों के खून की यह धारा कैसे रुकेगी? कौन बदलेगा हमारे धर्मग्रंथों को जो बेटे को सब कुछ मानते हैं और "पुत्रवती हो" का आशीर्वाद देते हैं?

4 टिप्‍पणियां:

  1. ठीक कहा, जब तक समाज नहीं बदलेगा हर रोज़ हजारों बच्चों के खून की यह धारा कैसे रुकेगी? समााज को बदलने पर ही रुकेगा यह सब।

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  2. सुनील जी,
    बहुत सुन्दर लिखाा है।
    मेरे विचार में कन्या-भ्रूण की हत्या के असली दोषी माता-पिता है। डाक्टर न करेंगें तो यह काम दाईयां कर डालेंगी। स्ट्रिगं ओपरेशन से केवल चैनल वालों का भला होता है अन्य किसी को न्याय मिलता दिखाीीई नहीं देता।एक दुकान बंद होगी तो दूसरी खुल जाएगी। शोर मचा कर मिडिया नई खबर खोजने चल देगा। दोषी दो दिन बाद छाती ठोंक घूमेगा। लूज़ स्ट्रिगंज़ को बाँधने का काम कोई करने को तैयार नहीं। इस तरह के आपरेशन करने की बजाए समाज की मानसिकता बदलने का काम करे तो बेहतर होगा। बुराई की जगह अच्छे काम करने वालों पर फोकस किया जाए तो शायद जागरुकता आए।

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  3. बहुत ही सही वयाख्या कि है सुनील जी,
    जब तक समाज में जागरुकता नहीं आयेगी, कानूनों से यह सब रुकने वाला नहीं।
    हम यहां आवाज उठाते है, इसे पढ़ कर अगर एक पिता भी अपना इरादा बदल ले, यहां लिखा सफल हो जायेगा।

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  4. सुनील जी,
    आप बहुत ही अच्छा लिखते है। मेरी मातृभाषा मराठी हैं, लेकिन हिन्दी भाषा पढने और सुनने में मुझे कोई खास परेशानी नहीं होती है। लेकिन मेरी लिखित हिन्दी इतनी अच्छी नहीं है।

    आजकल आप जैसे खुले विचार वाले लोगों की समाज को जरूरत है। आप अपने विचार इस तरह ही प्रकाशित करे.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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