मंगलवार, अप्रैल 25, 2006

भगवान कहाँ हैं ?

आज यहाँ इटली में गणतंत्र दिवस की छुट्टी है. करीब दो महीने हो गये घर पर आराम किये हुए, इसलिए आज सारा दिन आराम फरमाया गया. सुबह फ़िल्म देखी, "सलाम नमस्ते" जो मुझे विषेश अच्छी नहीं लगी, विषेशकर अंत का भाग बेकार लगा.

दोपहर को इतने दिनों से न पढ़े हुए चिट्ठे पढ़े.

फ़िर पंकज की पाठशाला में फोटोशाप के पाठ पढ़े. बढ़िया समझाया है, मुझ जैसे तकनीकी बुद्धू को भी समझ आ गया. पहले फोटोशोप फार डम्मिस जैसी किताबें खरीद कर भी नहीं पढ़ पाता था, समझ ही नहीं आती थीं. अब लगता है कि अगर पंकज इसी तरह से पाठ पढ़ाता रहा तो कुछ न कुछ तो समझ आ ही जायेगा. इसी खुशी में पंकज के "तरकश " को भी देखा और विभिन्न चिट्ठों को पढ़ा, जिसमें अनुगूँज कि पिछली धर्म पर हुई बहस भी थी. इस तरह घूमते फिरते, सोचा कि इस विषय पर कुछ लिखना चाहिये हालाँकि अनुगूँज का समय तो अब समाप्त हो गया है.

मैं स्वयं को हिंदू मानता हूँ और यह भी कि हिंदू धर्म में अन्य सभी धर्मों से अधिक सुविधा है कि आप भगवान और धर्म की हर बात को खुल कर सोच सकें, उसकी आलोचना कर सकें, उस पर बहस कर सकें. यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है. मेरे विचार में इसकी वजह है कि हिंदू धर्म में कोई एक पैगम्बर या मसीहा नहीं है और न ही एक किताब है जिसे सबसे ऊँचा माना जाये.

पर मुझे देवी देवताओं में विश्वास नहीं, न जात पात में, न पूजा पाठ में. मेरे विचार में हिंदू धर्म को खतरे में डालने वाले हैं वे लोग जो "हमारा धर्म खतरे में है" कह कर धर्म के नाम पर लड़ने के लिए तैयार रहते हैं और संकरे विचारों के साथ कट्टरपन दिखाते हैं.

बिना किसी देवी देवता में विश्वास किये बिना भी मुझे भगवान में विश्वास है, यह विश्वास किसी श्रद्धा के बल पर नहीं है बल्कि वैज्ञानिक तर्क के बल पर है. जानना चाहेगे मेरा वैज्ञानिक तर्क ?

मैं सोचता हूँ कि इस दुनिया की हर वस्तु, हवा, पानी, पत्थर, जीव, जानवर, पत्ते सब अणुओं के बने हैं जिनके भीतर एक जैसे न्यूट्रान, पोसिट्रोन (neutrone, positrones, etc.) आदि अतिसूक्ष्म कण अंतहीन घूमते हैं. हम यह तो कहते हैं कि विभिन्न तत्व विभिन्न एटम (atom) या मोलिक्यूल (molecule) के बने हैं, हाइड्रोजन का मोलिक्यूलर भार इतना है और कार्बन का उतना, पर एटम से नीचे स्तर पर उतरें तो हाइड्रोजन और कार्बन एक ही जैसे न्यूट्रान, पोसिट्रोन जैसे कणों से बने हैं. यानि कि जीवित और अजीवित, पत्थर और प्राणी, अंत में एक ही हैं, न दिखने वाले इतने छोटे कण. कणों का यह न समाप्त होने वाला नृत्य ही जीवन है जो पत्थर में भी है, प्राणियों में भी. प्राणियों में इस नृत्य की संज्ञा भी है, जो हमारी साँस बन कर चलती है. यह अतिसूक्ष्म कणों का अंतहीन नृत्य और कणों के बीच में घूमती संज्ञा, जो हम सबको एक दूसरे से जोड़ती है, यह ब्रह्म संज्ञा ही मेरे लिए ईश्वर हैं.

मुझे लगता है कि सभी आयोजित धर्म, एक सीमा के बाद अपनी शक्ति, पैसे, पहुँच, फैलाव आदि की चिंता करते हैं, अपनी रीति रिवाज़ो की रक्षा को परम लक्ष्य बना लेते हैं, दूसरों से स्वयं को कैसे भिन्न या अलग बनाया जाये की सोचते हैं, इश्वर की कम. अगर धर्मगुरुओं की चले तो शायद हम लोग हमेशा लड़ते मरते ही रहें. अच्छी बात यह है कि सभी धर्मों में कुछ समझदार लोग भी हैं जो अपने धर्म को आलोचना की नजर से देख कर उनके अच्छे बुरे पहलुओं पर विचार कर सकते हैं.

2 टिप्‍पणियां:

"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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