सुबह सुबह गर्म चाय का प्याला और सुबह का ताजा अखबार, अभी भी सोच कर मजा आ जाता है. बिस्तर में लेट या बैठ कर, प्याले को सम्भालने की कोशिश करते हुए अखबार पढ़ना तो अब केवल भारत यात्रा में ही होता है. शुरु से रोज अखबार पढ़ने की आदत थी. पर अब सब कुछ बदल गया है. बहुत सालों से अखबार कम ही पढ़ता हूँ.
इतना कुछ हो पढ़ने के लिए कि आप जितनी भी कोशिश कीजिये, उसे कभी नहीं पढ़ पायेंगे, इस बात ने शायद मेरी पढ़ने की इच्छा को दबा दिया है ? सबसे पहला धक्का मुझे इटली की अखबारों से लगा. रोज़ ५० या ६० पन्नों की अखबार को शुरु से आखिर तक पढ़ने के लिए कम से कम दो घंटे चाहिये. कई बार कोशिश की पर पूरी अखबार तो बहुत कम बार पढ़ पाया और अखबारें पढ़े जाने के इंतजार में मेरी मेज पर ढ़ेर सी इक्ट्ठी होती जातीं. अंत में निराश हो कर अखबार खरीदना ही बंद कर दिया. अब तो बस इंटरनेट पर मुख्य समाचार पढ़ता हूँ और अखबार तभी खरीदी जाती है जब कोई विषेश बात हो, वो भी केवल रविवार को.
दूसरा धक्का लगा इस बात से कि यहां अखबार आप के घर पर ला कर छोड़ने वाला कोई नहीं है. जब नहा धो कर काम के लिए निकलये तो रास्ते में अखबार भी खरीद लीजिये, पर उसे पढ़ें कब ? रात को सोने से पहले ? या फिर ऐसा काम ढ़ूंढ़िये जिसमे अखबार पढ़ने का समय हो! क्या कोई बेरोजगार घर पर अखबार देने के काम को नहीं अपना सकता? हालांकि यहां चाय नहीं छोटे से प्याले में काफी पीने का रिवाज है जो एक घूँट में ही खत्म हो जाती है, इसलिए बिस्तर में अखबार और चाय वाला मजा तो नहीं होगा, पर फिर भी कोशिश करने में क्या बुरा है!
तीसरी बात कि यहां पत्रकारों को भी सब त्योहारों पर छुट्टियां चाहिये इसलिए सोमवार को यहां अखबार नहीं निकलता. और अगर दो तीन छुट्टियां साथ आ जायें तो अखबार आप को उनमें से केवल पहले दिन ही मिलेगा. यानि जब आप के पास पढ़ने का समय है तो अखबार ही नहीं. पिछले कुछ महीनों से जैसे लंदन में मेट्रो स्टेश्नों पर सुबह मुफ्त छोटा सा अखबार मिलता है, वैसे ही अखबार यहां भी आने लगे हैं. थोड़े से पन्ने होते हैं, कुछ स्थानीय खबरें और बहुत से विज्ञापन. कभी कभी चौराहे पर उसे बाँट रहे होते हैं तो मैं भी ले लेता हूँ. अगर न भी पढ़ा जाये तो दुख कम होता है, क्योंकि मुफ्त में जो मिलता है.
पूरी अखबार पढ़ने के लिए रिटायर होने की प्रतीक्षा है, और गर्म चाय के साथ बिस्तर में बैठ कर अखबार पढ़ना तो केवल भारत यात्रा के दौरान ही होगा.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया &...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
ईसा से करीब आठ सौ वर्ष पहले, इटली के मध्य भाग में, रोम के उत्तर-पश्चिम में, बाहर कहीं से आ कर एक भिन्न सभ्यता के लोग वहाँ बस गये जिन्हें एत्...
-
कुछ सप्ताह पहले आयी फ़िल्म "आदिपुरुष" का जन्म शायद किसी अशुभ महूर्त में हुआ था। जैसे ही उसका ट्रेलर निकला, उसके विरुद्ध हंगामे होने...
-
प्रोफेसर अलेसाँद्रा कोनसोलारो उत्तरी इटली में तोरीनो (Turin) शहर में विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी की प्रोफेसर हैं. उन्होंने बात उठायी मेरे...
-
भारत की शायद सबसे प्रसिद्ध महिला चित्रकार अमृता शेरगिल, भारत से बाहर कला विशेषज्ञों में उतनी पसिद्ध नहीं हैं, पर भारतीय कला क्षेत्र में उनका...
यहाँ के 20-22 पृष्ठों के अख़बार भी काफ़ी वक़्त लेते हैं, फ्रिर 50-60 पन्ने पढ़ना तो लगभग नामुमकिन सा ही है।
जवाब देंहटाएं