सोमवार, सितंबर 12, 2005

चार साल पहले

चार साल पहले, ११ सितंबर २००१ के न्यू योर्क पर हुए हमले की आज बरसी है. जब ऐसी कोई घटना होती है, तो याद रहता है कि जब यह समाचार मिला था, उस दिन, उस समय हम कहाँ थे, क्या कर रहे थे. उस दिन मैं लेबनान जा रहा था, सुबह बोलोनिया से उड़ान ले कर मिलान पहूँचा था और बेरुत की उड़ान का इंतज़ार कर रहा था, जब किसी से सुना. हवाई अड्डे पर ही एक टीवी पर उन न भूलने वाली छवियों को देखा. आस पास हवाई अड्डे पर दुकाने बंद होने लगी और हमारी उड़ान भी रद्द हो गयी. सारा दिन हवाई अड्डे में बिता कर, रात को घर लौटा था.

पर उस दिन चिंता अपनी उड़ान की नहीं, माँ की हो रही थी, जो उसी सुबह वाशिंगटन पहुँच रहीं थीं. उनकी उड़ान को केनेडा में कहीं भेज दिया गया था और दो तीन दिन तक हमें पता नहीं चल पाया था कि वे कहाँ हैं.

कल टीवी पर ११ सितंबर पर बनी वह फिल्म देखी जिसमें विभिन्न देशों के फिल्म निर्देशकों के बनायीं छोटी छोटी कई फिल्मे हैं. उनमें, मीरा नायर की फिल्म जिसमें वह पाकिस्तानी लड़के सलीम की कहानी है, भी है. मुझे वह फिल्म अच्छी लगी जिसमें गाँव की शिक्षका छोटे बच्चौं को यह समाचार समझाने की कोशिश करके, उनसे एक मिनट का मौन रखवाती है. पर मेरे लिए सबसे अच्छी फिल्म उस गूँगी बहरी फ्राँसिसी लड़की की है जो न्यू योर्क के इशारों की भाषा के अनुवादक लड़के के साथ रहती है.

कल के चिट्ठे की टिप्पड़ियों ने सोवने का सामान दिया है. विषेशकर, रमण की भारतीय पारिवारिक सम्बंधों के बारे में टिप्पड़ीं. हमारे दादा, नाना, मामा, चाचा जैसे रिश्ते पश्चिम देशों में कम महत्वपूर्ण होते हैं ? पर रमण और भी नयी दिशाओं में बात को बढ़ा रहे हैं. जैसे रेलगाड़ी के बदले में लोहपथगामिनी जैसे शब्दों का बनाना या फिर ऐसे शब्द ढ़ूँढ़ना जो अंग्रेजी में हैं और हिंदी में नहीं जैसे teenager. पुण्य और धर्म के जो उदाहरण स्वामी जी ने दिये हैं वे शायद हिंदु धर्म विचारों की वजह से हैं और मोक्ष, निर्वाण, आदि अन्य शब्दों की ओर ले जाते हैं.

आज की तस्वीरें कुछ साल पहले की न्यू योर्क यात्रा से - ट्विन टोवर्स की ऊपरी मंजिल से एक दृष्य और टोवर्स के नीचे हाल में एक शादीः

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